- पालिका अध्यक्ष खोड़निया एवं एसडीएम द्विवेदी ने किया होलिका दहन।
- होलिका दहन पर लोगों और युवाओं में भारी उत्साह और उमंग नजर आया।
सागवाड़ा : नगरपालिका क्षेत्र के मांडवी चौक पर पालिका अध्यक्ष नरेन्द्र खोड़निया एवं एसडीएम राजीव द्विवेदी द्वारा आज शाम अर्धम पर अच्छाई की जीत होलिका दहन विधि पूर्वक किया गया।
वर्तमान में होलिका दहन पर लोगों और युवाओं में भारी उत्साह और उमंग नजर आया। कोरोना काल के दो साल के बाद यह तीसरी होली है, जब कोविड की किसी तरह की पाबंदी के बिना लोग पर्व मनाने जुटे है। इसके कारण होली का उत्साह इस बार दोगुने से भी ज्यादा है।
सागवाड़ा नगरपालिका में वर्षो से चली आ रही परंपरा के अनुसार जो भी नगरपालिका का अध्यक्ष बनता है, उसी के द्वारा सर्वप्रथम नगर में होलिका दहन किया जाता है।
इसी परंपरा के तहत आज पालिका अध्यक्ष नरेन्द्र खोड़निया, उपखंड अधिकारी राजीव द्विवेदी तथा पार्षद गण की उपस्थिति में पूजा अर्चना कर होलिका दहन किया गया, जिसमे सर्व समाज के लोगों ने भाग लिया।
होलिका दहन के दौरान सागवाड़ा नगरपालिका में परंपरा के अनुसार आस पास कही भी होलिका दहन किया जाता है, तो अग्नि यही से जाती है। विभिन्न मोहल्लेवासी अपने अपने मोहल्ले में होलिका दहन करने हेतु यहां से अग्नि ले जाते है एवं उससे मोहल्लों में होलिका दहन किया जाता है।
होलिका दहन के पश्चात नगरवासियों ने एक दूसरे को बधाई दी। इस अवसर पर शांति व्यवस्था बनाए रखने हेतु डिप्टी कमिश्नर नरपत सिंह एवं सागवाड़ा पुलिस भी मौके पर उपस्थित रही।
होलिका दहन प्राचीनकाल से चली आ रही मान्यता है
मान्यता के अनुसार होली का त्योहार विष्णु भक्त प्रह्रलाद, हिरण्यकश्यप और होलिका की कथा से जुड़ी हुई है. प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप कठिन तपस्या करने के बाद ब्रह्राजी के द्वारा मिले वरदान से खुद को ही ईश्वर मानने लगा था. वह अपने राज्य में सभी से अपनी पूजा कराने लगा था. उसने वरदान के रूप में ऐसी शक्तियां कर ली थी कि कोई भी प्राणी, कहीं भी, किसी भी समय उसे मार नहीं सकता था. किसी भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य से अवध्य, न रात में न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर, न बाहर. कोई अस्त्र-शस्त्र भी उस पर असर न कर पाए.
हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर विरोधी होने के बावजूद उसके यहां प्रह्राद नाम के पुत्र जन्म हुआ. प्रह्राद जन्म से भगवान विष्णु के परम भक्त थे. भक्त प्रह्राद हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहा करते थे. पिता हिरण्यकश्यप भक्त प्रह्ललाद की विष्णु उपासना से हमेशा क्रोघित रहते थे और बार-बार समझाने के बावजूद प्रह्राद ने विष्णुजी की आराधना नहीं छोड़ी. पिता हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मरवाने की हर कोशिश की, लेकिन भक्त प्रह्राद विष्णु भक्ति के कारण हर बार बच जाते.
अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन और भक्त प्रह्राद की बुआ होलिका को अपने पुत्र को मारने का आदेश दिया. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था जिसमें वह कभी भी आग से नहीं जल सकती थी. इस मिले वरदान का लाभ उठाने के लिए हिरण्यकश्यप ने बहन से प्रह्राद को गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया, ताकि आग में जलकर प्रह्राद की मृत्यु हो जाए. अपने भाई के आदेश का पालन करते हुए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई लेकिन तब भी प्रह्राद भगवान विष्णु के नाम का जप करते रहे और भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका उस आग में जलकर मर गई। इसी घटना की याद में हर साल होली की पूर्व संध्या पर होलिका का दहन किया जाता है।
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