वागड़ के जाने माने साहित्यकार, लेखक और शोधकर्ता रविंद्र डी पण्ड्या का देहान्त

डूंगरपुर : दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग के डूंगरपुर जिले के खड़गदा कस्बे के निवासी जाने माने साहित्यकार, लेखक और शोधकर्ता रविंद्र डी पण्ड्या के देहान्त पर वागड़ क्षेत्र में शोक की लहर छा गई है। वे 76 वर्ष के थे और कुछ सालों से ह्रदय रोग से पीडित थे। उनका पिछले दो माह से गुजरात के आणंद में इलाज चल रहा था। पैतृक गांव खडगदा में उनका अंतिम संस्कार किया गया। डॉ पंड्या बेणेश्वर के मावजी फाउंडेशन और माव संग्रहालय के प्रभारी रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई उपलब्धिया हासिल की।
     पण्ड्या के अग्रज उदयपुर आयुर्वेद कालेज के पूर्व प्राचार्य नरहरि पण्ड्या ने बताया कि वे कुछ समय से अस्वस्थ थे। पुत्र रंगमंच और फिल्म कलाकार भूपेश के असामयिक निधन के बाद लगे आघात से वे टूट से गए थे।
     भट्ट मेवाडा ब्राह्मण समाज खडगदा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विमलेश पंड्या ने बताया कि वे इन्टैक भारतीय सांस्कृतिक निधि डुंगरपुर के सह समन्वयक, रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ इण्डिया आगरा के मेम्बर, हूमड इतिहास शोध समिति के सदस्य और पूर्व सदस्य 14वीं सरस्वती सभा, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के पद पर रहे। उनके प्रयासों से ही बेणेश्वर धाम पर संत मावजी संग्रहालय की स्थापना हुई। उन्होंने अरथुना के मंदिर, वागड के क्षेत्रपाल, वागड के भित्तिचित्र, गलियाकोट दर्शन, महा रासलिला और मावजी जीवन दर्पण में झांकती श्रीकृष्णलीला जैसे विषय पर किताबें लिखी। उनके 80 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं।
     जन सम्पर्क विशेषज्ञ गोपेंद्र नाथ भट्ट ने रविंद्र डी पण्ड्या के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि पण्ड्या के निधन से वागड़ के साहित्य जगत में एक शून्य पैदा हो गया है। उन्होंने आदिवासियों के कुम्भ बेणेश्वर महान संत और भविष्यवेत्ता मावजी महाराज के चौपड़ें सहित कई विषयों पर शोध पूर्व लेखन कार्य किया और श्री लंका जाकर वहाँ की प्राचीन गुफाओं और पुरातन विरासत पर भी शोध किया। पण्ड्या ने कई पुस्तकें भी लिखी।

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